आती होगी ना उनको भी अपनें कटी पतंगों कि यादें जो उड़ गयी क्षितिज में और फिर न लौट आएंगे उन पतंगों की यादें। मुझको तो है याद मेरे दोस्त वो बत्तीस रुपैये कि लटाई वो मांझे की सरसराहट और हाथों में तुम्हारे नए लाल हरे चूड़ियों की खनखनाहट। चलो एक बार फिर मिल पतंग उड़ाएं तुम चकरी संभालो और हम ढील लगाएं इसी बहाने हम और तुम सुनहरे आसमानों से हो घुलमिल फिर संक्रांति मनाएं।
Together, under a clear blue sky