एक चाहत थी , पुरानी सी कभी सुलगती , तो कभी अधमरी । जब बारिशों का मौसम आता था , पंखुड़ियों की चाहत होती थी जी करता था मैं भी भीगूँ और कुछ और बन जाऊं। जब ग्रीष्म प्रलय बरसाती थी , जी करता था मैं भी जल जाऊँ , अग्नी को सीने से लिपटाये मैं भी बस अब राख हो जाऊं। बारिशें आज भी होती है तपती धरती अब तक है पर ख्वाइशें अब कुछ बदल सी गईं , सदियों की इस बिछडन से उम्मीदें मर सी गयी है। फिर कभी तुम आ जाना यूहीं ईमेल या स्कूटी मैं थोड़ा परेशान और थोड़ा प्यार दोनों एक बार फिर से कर जाना उम्मीदें तो बैटरी है जब चाहे चार्ज कर देना। कम से कम एक कॉल फिर एक बार कर देना।
Together, under a clear blue sky